अंकित कुमार । इस समय में परीक्षाएं होना कितना उचित? इसी सवाल पर आज हम बात करेंगें।
यूजीसी परीक्षाएं करवाने के पक्ष में हैं। एमएचआरडी परीक्षाएं करवाने के पक्ष में हैं। सरकार परीक्षाएं करवाने के पक्ष में हैं। यहाँ तक कि विश्वविद्यालय भी परीक्षाएं करवाने के पक्ष में हैं। अगर कोई पक्ष में नहीं है तो वो है छात्र। (ध्यान दें मैंने यहाँ छात्र लिखा है, छात्र संगठन नहीं! इसलिए मेरी बात को कृपया राजनीति से न जोड़ें)।
हालांकि ऐसा नहीं कि सभी छात्र परीक्षाओं के पक्ष में नहीं है, कुछ पक्ष में भी हैं। आखिर ऐसा हो भी क्यों नहीं, यही तो लोकतंत्र है और लोकतंत्र की खूबसूरती पक्ष और विपक्ष दोनों के होने से ही है। इसी लोकतंत्र की वजह से हमारी हिमाचल प्रदेश की विधानसभा में जो सरकार बैठती है आखिर सभी लोग तो उसके पक्ष में भी नहीं होते। तभी तो उसी विधानसभा में विपक्ष भी मौजूद होता है।
खैर आप लोग ये सोच रहे होंगे कि मैं अपने सवाल से भटककर इस पक्ष-विपक्ष के खेल में उलझ गया हूँ। पर मैं उलझा नहीं हूँ, मैं इस पक्ष-विपक्ष से आपको इतना समझाना चाहता हूँ कि जरूरी नहीं जो पक्ष में होता है वही सही हो और विपक्ष वाला गलत। अगर ऐसा होता तो विधानसभा, लोकसभा या किसी भी जगह की विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं होती। खैर आप मेरी बात का तात्पर्य समझ चुके होंगे, चलिये अब अपने असली सवाल पर आते हैं।
तो हमारा सवाल है कि इस समय परीक्षाओं का होना कितना उचित? अगर आप मेरा जवाब सुनने के उत्सुक है तो मैं कहता हूँ बिल्कुल उचित नहीं और मैं ये बहुत सोच समझकर कह रहा हूँ। अगर आप मेरे जवाब से सहमत नहीं है तब भी आपसे मेरा आग्रह है कि मेरा लेख एक बार पूरा पढ़ लें। मैं आपके विचारों की भी क़दर करता हूँ।
चलिये पहले बात कर लेते हैं उन छात्रों की तो परीक्षाओं के पक्ष में नहीं हैं। अगर आप किन्हीं भी 100/1000/10000 छात्रों से उनका पक्ष जानेंगे तो मेरा दावा है कि 80 प्रतिशत से अधिक परीक्षाओं के पक्ष में नहीं होंगे। अब आप बोलेंगे की वह तो साल भर पढ़ते नहीं हैं, वह बिना पढ़े पास होना चाहते हैं, वह परीक्षाओं से डरते हैं और भी तो छात्र हैं जो परीक्षाएं देना चाह रहे हैं। खैर आपका तर्क सही हो सकता है, मैं इसकी कदर करता हूँ। पर एक बार जरा सोचिए कि क्या प्रदेश का परिणाम हर बार 20 प्रतिशत से कम आता रहा है।
अब कुछ लोगों को मेरे तर्क पर हंसी आ रही होगी और कुछ को अपने तर्क में। खैर हंसी आना स्वाभाविक है क्योंकि मेरी नज़र में दोनों ही तर्क एक-दूसरे के बराबर है। क्योंकि जब आपका तर्क ही बच्चों वाला है, तो फिर मैं ज़्यादा ज्ञानी क्यों बनूं। और जो छात्र परीक्षाओं के पक्ष में हैं उन्हें एक बार हमारी सरकार के पुराने कामों पर नज़र दौड़ा लेनी चाहिए।
अब बात करते हैं परीक्षाएं क्यों नहीं होनी चाहिए? मेरे कुछ सवाल हैं? अगर आपके इन सवालों के जवाब हाँ है तो परीक्षाएं होने से मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं।
तो चलिए मेरा पहला सवाल है कि क्या सरकार इन परीक्षाओं से पहले परीक्षा में शामिल होने वाले सभी छात्रों का कोरोना टेस्ट करवाएगी?
क्या सभी कॉलेजों में सोशल डिस्टेंसिग में बैठने की व्यवस्था, सैनिटाइजेशन की उचित व्यवस्था होगी? क्योंकि कई कॉलेज तो ऐसे हैं जिनका अपना भवन तक नहीं हैं।
अब एक मुख्य सवाल की छात्र परीक्षा देने पहुंचेंगे कैसे? अगर बात करें तो लगभग 90 प्रतिशत से अधिक छात्र बसों में सफर करके कॉलेज जाते हैं और इनमें निगम की बसों की अहम भूमिका होती है। लेकिन अभी तक निगम की तरफ से कई स्थानों पर बसें शुरू ही नहीं की गई है।
चलो मान लेते हैं कि निगम परीक्षाओं के समय बसें चला देगा लेकिन क्या आपके निगम की सभी बसें 100% सवारियों के साथ सभी छात्रों को लाने की क्षमता रखती हैं। क्योंकि बस आप ओवरलोड तो कर नहीं सकते और आपकी एक बस में सभी छात्र और अन्य लोग भी आ जाये ऐसा सम्भव नहीं हैं। तो क्या आप सभी छात्रों को कॉलेज तक या कॉलेज के नजदीकी बस स्टॉप तक पहुंचाने और घर छोड़ने की जिम्मेदारी लेते हैं?
इसके अलावा अगर कोई छात्र संक्रमित पाया जाता है तो क्या आपके पास पहले से इसके लिए कोई रणनीति तैयार है कि आप हर एक छात्र का बचाव किस प्रकार करेंगे।
अगर आपके इन सभी सवालों के जवाब हाँ है, तो आप शौक से परीक्षाएं करवा सकते हैं। क्योंकि जब मुख्यमंत्री कार्यालय तक कोरोना पहुँच सकता है तो आप एक परीक्षा केंद्र का बचाव कैसे करेंगे यह जानना जरूरी है।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं।