डॉ० विक्रम सिंह । मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रिक देश के लिए नई शिक्षा निति का अनुमोदन कर दिया, मतलब संसद में बिना किसी चर्चा के इतने विशाल और विविधता वाले देश जो अपने मज़बूत लोकतंत्र का दम भरता है वहां इतना महतवपूर्ण निर्णय संसद में न होकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में होना लोकतंत्र की हत्या नहीं तो क्या है?
सवाल उठना लाजमी है कि इस समय जब पूरे देश का ध्यान कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने, बदहाल अर्थव्यवस्था को बचाने और बेरोजगारी की विकराल समस्या से पार पाने की आशा अपनी सरकार से कर रहा है, तब ऐसी क्या आफत आ गई कि इतने महत्वपूर्ण निर्णय के लिए सरकार संसद के सत्र की प्रतीक्षा तक नहीं कर पाई।
हालाँकि पिछले 6 वर्षो से NEP का मसला सरकार के पाले में ही अटका पड़ा था और सरकार ने सामान्य स्तिथियों में भी NEP के प्रस्ताव पर संसद में चर्चा करवाने की कोई तत्परता नहीं दिखाई। इससे से ही पता चलता है कि सरकार की असल मंशा क्या है। कोई भी अनुमान लगा सकता है कि आज केंद्रीय मंत्रिमंडल ने क्या तय किया होगा- छात्रों और शिक्षा के पक्ष में तो कतई नहीं होगा। जिस निति को सरकार संसद में चर्चा न कर संकट के समय का फायदा उठाते हुए पिछले दरवाजे से लागू करवाया जाये उससे क्या ही आशा की जा सकती है।
यह देश के छात्रों और शिक्षाविदों से तो विश्वासघात है ही परन्तु भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करना है। छात्रों के लिए इस शिक्षा निति का पहला सबक है कि लोकतंत्र को कमजोर कैसे करना है और कैसे एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में तानाशाहीपूर्ण निर्णय लागू करने।
कहाँ तो छात्र आशा कर रहें थे कि सरकार अंतिम वर्ष (टर्मिनल) परीक्षा पर बने गतिरोध को ख़त्म करते हुए छात्रों के पक्ष में कड़ी होगी परन्तु भाजपा सरकार ने भी संकट में अवसर का फायदा उठाया। जो निर्णय छात्रों पर सामान्य स्थितयों में नहीं थोप सकती थी उसे ऐसे समय में थोप दिया। यही है मोदी जी का संकट में अवसर, अवसर जनता के लिए नहीं परन्तु जनता के खिलाफ।
इससे पहले भी सरकार इसी संकट का फायदा उठाते हुए मज़दूरों के खिलाफ निर्णय लेते हुए श्रम कानूनों में बड़े फेरबदल कर चुकी है, किसानो और किसानी की कमर तोड़ने के लिए बाजार को खुला नाच करने के लिए तीन अध्यादेश ला चुकी है। इसी अवसर का फायदा उठाकर देश की जनता की सार्वजानिक सम्पति ‘सार्वजनिक उपक्रमों ‘ की सेल लगाए हुए है रेल को भू बेच रही है।
ऐसा लगता है की संकट तो केवल आम इंसान के लिए ही है- पूंजीपतियों के लिए तो अवसर ही है अपनी सम्पति और मुनाफा बढ़ाने का।
जो विरोध करेगा वह जेल में। आज ही दिल्ली विशविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू की गिरफ़्तारी इसी क्रम में हुई और अब यह निर्णय।
अब जनता भी क्या करे वायरस से अपनी जिंदगी बचाये या अपने देश का भविष्य ? मुश्किल है विकल्प चुनना ?
अभी केंद्रीय संसाधन विकास मंत्री (जो भविष्य में शिक्षा मंत्री के नाम से जाने जायेंगे) विस्तृत घोषता करेंगे परन्तु एक बात तो पक्की है कि इस निति में शिक्षा का बड़े स्तर पर व्यावसायीकरण, केंद्रीकरण और सांप्रदायिकरन होगा जैसा कि इसके मसौदे में शामिल था। वंचित समुदाय के छात्रों के लिए शिक्षा का सपना साकार करना मुश्किल होगा और निजी हिस्सेदारी शिक्षा में बढ़ेगी जिसका मकसद केवल लाभ होगा। सरकार ने तो कर दिखाया अब देश के छात्रों, शिक्षा समुदाय और आम जान को तय करना कि देश का भविष्य क्या होगा ? और यह तय करने का इकलौता विकल्प बचा है संघर्ष ? संसद उन्होंने हमसे छीन ली परन्तु सड़क हमारे लिए है।