हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष और सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा ने कहा है कि भाजपा के जहाज में इतने छेद हो चुके हैं कि यह डूबने से पहले अब हिचकोले खा रहा है और यही वजह है कि अब इस डूबते जहाज में कोई सवार चढ़ना नहीं चाहता।
यहां जारी एक प्रैस बयान में राजेंद्र राणा ने कहा कि प्रदेश में भाजपा के नेता आए दिन यह दावे कर रहे हैं कि कांग्रेस के लोग भाजपा के संपर्क में हैं और उनके ये दावे मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह हैं क्योंकि कोई भी समझदार व्यक्ति अब इस डूबते जहाज में सवार होने का जोखिम क्यों लेना चाहेगा।
राजेंद्र राणा ने कहा कि भाजपा से अपना कुनबा तो संभल नहीं रहा और कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ देने से प्रदेश में भाजपा को करारे झटके लग रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह किसानों, बागवानो, कर्मचारियों, पैंशनर्ज, आऊटसोर्स कर्मियों व मजदूरों सहित समाज के हर वर्ग के साथ भाजपा ने वायदाखिलाफी की है, उससे जनता में गुस्सा चरम सीमा पर है। प्रदेश में 4 सीटों पर हुए उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल प्रदेश की जनता का गुस्सा देख ही चुका है और सत्ता में रहते हुए भी भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है।
उन्होंने कहा कि भाजपा के कई नेता आए दिन यह राग अलाप रहे हैं कि प्रदेश में इस बार रिवाज बदलेंगे और सरकार रिपीट करेंगे लेकिन ऐसे नेताओं को खुशफहमी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि प्रदेश की जनता रिवाज नहीं बल्कि सरकार बदलने वाली है। राणा ने कहा प्रदेश में जगह-जगह होर्डिंग टांग देने से भाजपा को कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि भाजपा के जहाज में अब इतने छेद हो चुके हैं कि इसी साल होने वाले चुनाव में जनता के गुस्से की सुनामी भाजपा के जहाज को डुबो देगी।
राजेंद्र राणा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी पूरी तरह एकजुट और संगठित है तथा कांग्रेस के कार्यक्रमों में जिस तरह जनता उमड़ रही है, उससे दीवार पर लिखी इबारत साफ पढ़ी जा सकती है कि प्रदेश में भारी बहुमत के साथ कांग्रेस का सत्ता में लौटना तय है।
उन्होंने कहा कि भाजपा के डूबते हुए जहाज में कांग्रेस का कोई नेता सवार होने वाला नहीं है और कांग्रेस के जो चंद लोग आम आदमी पार्टी में भी गए थे, वह भी अब पछता रहे हैं और पार्टी में वापस लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। ऐसे में भाजपा नेताओं द्वारा यह दावे करना हास्यास्पद है कि कांग्रेस के कुछ लोग उनके संपर्क में हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं को इस समय यह आत्मचिंतन करने की जरूरत है कि अपने बिखरते कुनबे को कैसे संभाला जाए और अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के असंतोष को किस तरह दूर किया जाए।