शिमला। गर्भवती महिला मातृत्व के दौरान सम्मान की हकदार है। गर्भवती महिलाओं की जेल की सजा टालने से कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा। एक गर्भवती महिला जेल की नहीं जमानत की हकदार होती है। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शनिवार को एनडीपीएस एक्ट के तहत आरोपी महिला को अग्रिम जमानत पर रिहा करते हुए यह टिप्पणी की है।
न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने अग्रिम जमानत याचिका स्वीकारते हुए कहा कि मादक पदार्थो की तस्करी दंडनीय अपराध है, लेकिन एक गर्भवती महिला का अपराधी होना अजन्मे बच्चे के लिए पूरी उम्र घातक साबित हो सकता है। यदि उसका जन्म जेल में हो। इसलिए गर्भवती महिलाओं की सजा को यदि बच्चे के जन्म से पहले व उसके बाद लगभग एक साल तक के लिए टालने से समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ जाएगा।
गर्भवती महिला को तनावमुक्त वातावरण की जरूरत होती है। आरोपित गर्भवती महिलाओं को जेल में पौष्टिक आहार तो मिल सकता है, लेकिन मानसिक तनाव से मुक्ति नहीं। पौष्टिक आहार अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की जगह नहीं ले सकता। जेल में जन्म लेने पर बच्चे को तब-तब मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है, जब-जब उसके जन्म की बात उठेगी। इसलिए अपराध चाहे कितना भी बड़ा हो, कम से कम ऐसे समय में अस्थायी बेल तो दी ही जानी चाहिए।