शासक जब फेल होता है तो जनता को भटकाने का काम करता है: अमर सिंह राघवा

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वैसे अगर शासक समझदार हो तो वो अपनी ग़लती मान कर जन सहयोग और विश्वास से आगे बढ़ता है। परन्तु अगर शासक भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहा हो तो अपने प्रबंधन की गलती न मानकर जनता को भटकाने या गुमराह करने को नई तकनीकों का प्रयोग करता है। पूरे देश में आज जो स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रबंधन की पोल खुली है वो आमजन के सामने है और असहाय जनता भुगत रही है। बात हिमाचल की करते है ।

70 लाख की आबादी वाला शांत प्रदेश। यहां के भोले भाले शासकों को यही मालूम न हुआ कि इस आपदा के समय में कैसे सैनिटाइजर, पी पी किट, टैस्टिंग किट इत्यादि घोटाले हो गए और अब कुमारसैन और ननखड़ी में कंपनी द्वारा नये ग्लोब्स, किट्स, मास्क इत्यादि के पैकेट में पुराने प्रयोग में लाए गए ग्लोब्स और कंडोम ही भेज दिए। पहले के घोटालों पर कार्रवाई हो चुकी है अब इसके लिए भी जांच हो रही है।

ज्यादातर कोविड अस्पतालों से ईलाज में अव्यवस्था, अनदेखी या असुविधा की शिकायतें जनता की तरफ़ से और कई लाइव विडियो के माध्यम से आ रही है।हमारे भोले भाले शासकों को इसका भी कोई पता नहीं चला है। क्योंकि इसका दर्द तो वो ही परिवार सह रहे हैं जिनके परिजन बचाए जा सकते थे। जनता का रोष तो जो मैडिकल स्टाफ उनके सामने है उन पर ही जायेगा। उससे आगे तो जनता को सोचने की मनाही है, कि क्यों इस आपदा के समय भी भ्रष्टाचार बढ़ रहा है और हर जगह महंगाई है। जनता क्यों सोचे कि हर जरुरत के स्थान पर सभी सुविधाओं से युक्त और पूरे डॉक्टर्स व स्टाफ से युक्त अस्पताल हो जिससे किसी बीमार को दूसरे अस्पतालों में रैफर न करना पड़े और वहीं मरीज़ की जरुरत का ईलाज हो सके। मेरा मानना है कि सीमित साधनों और क्षमता से मैडिकल स्टाफ अपना काम कर ही रहा है अब अगर ऑक्सीजन उपलब्ध न हो तो डॉक्टर भी क्या करे।

यह तो रही बात की हमारे प्रदेश के पास मैडिकल स्टाफ और अस्पतालों में सुविधाओं कमी है जिसका न तो हमारे भोले शासकों को पता है न ही वो इस बात को मानते है। अब भी जो उपलब्ध संसाधन हैं उनका सही प्रबंधन करने की बजाय दिखावा जो करना है कि फलां मंत्री या विधायक ने ये दे दिया वो दे दिया जैसे कोई घर से दे रहा हो। अब जनता क्यों सोचे कि यह सब तो उसके ही टैक्स का पैसा है जिससे विधायक या  मंत्रियों से लेकर अधिकारियों के वेतन, भत्ते सब भरे जाते हैं। ऐसा भी क्यों सोचे समाज सेवियों व विदेशों से दी गई सहायता किसके नाम से बांटी जा रही है। उलझे रहो अब वेक्सिनेशन में नंबर आयेगा तो चाहे 50 किलोमीटर जाओ पर जान बचानी है तो जाना तो पड़ेगा। जनता यह भी क्यों सोचे कि वैक्सीन नहीं इसलिए तो दूसरी डोज का समय और ये स्लॉट बुकिंग का प्रबंध करना पड़ रहा है।

भोले शासकों को तो यह भी मालूम नही है कि हिमाचल में सबको स्मार्ट फोन, हर जगह नेटवर्क और 50 किलोमीटर तक पहुंचने के लिए साधन भी उपलब्ध करवाने होते हैं। अब जनता क्यों सोचे कि यह वैक्सिन किसके हिस्से में आएगी।और साधारण सी बुकिंग व सीरियल वाइज प्रबन्धन करके हर केंद्र में यही वेक्सिनेशन दो दिन में पूरी हो जाती। चलो अब काफ़ी हो गया। अभी भी विनम्र निवेदन है कि उपलब्ध संसाधनों का सही प्रबंधन करके नागरिकों के जीवन की सुरक्षा करें। दिखावे और उलझाने से बात नही बनेगी। उलझते हुऐ जो जनता सोच रही है वो नवनिर्माण की ओर अग्रसर है।

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं।

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