हिमाचल: बेरोजगारी के दौर में प्राकृतिक फल ‘काफल’ बना आमदनी का जरिया

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अंकित कुमार, मंडी।। मौसमी व जंगली तौर पर पाया जाने वाला ‘काफल’ प्रकाश चंद, कृष्ण चंद, देवेन्द्र व अजय कुमार सहित कई लोगों के लिये आजकल आमदनी का एक बेहतरीन जरिया बना हुआ है। काफल बेचकर न केवल ये लोग प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार रुपये की कमाई कर पा रहे हैं बल्कि डेढ से दो महीनों तक चलने वाले काफल के फल को बेचकर औसतन 60 से 70 हजार रुपये की कमाई कर लेते हैं। ऐसे में काफल बेचने वाले ग्रामीणों के लिये यह जंगली फल काफल वार्षिक आमदनी में कमाई का एक बड़ा जरिया बना है।

जोगिन्दर नगर शहर के थाना चौक में काफल बेचने वाले प्रकाश चंद से बातचीत की तो उन्होने बताया कि वे पिछले लगभग 10 वर्षों से लगातार काफल बेच रहे हैं तथा आजकल वे प्रतिदिन एक क्विंटल से अधिक मात्रा में काफल बेच देते हैं। जिससे उनको लगभग प्रतिदिन तीन हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है।

काफल

इसी तरह जोगिन्दर नगर बस स्टैंड के बाहर काफल बेचने वाले देवेन्द्र कुमार ने बताया कि वह भी पिछले 15-16 वर्षों से लगातार काफल बेच रहे हैं तथा इससे अच्छी आमदनी हो जाती है। वर्तमान में उन्हे काफल से प्रतिदिन लगभग 15 सौ रुपये तक की कमाई हो रही है।

इसी तरह जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन के नजदीक लगभग पांच वर्ष से काफल बेचने वाले अजय कुमार ने बताया कि उन्हे भी प्रतिदिन काफल से लगभग 2 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। यही नहीं जोगिन्दर नगर बस स्टेंड में ही काफल बेच रहे कृष्ण चंद ने बताया कि वे भी प्रतिदिन काफल बेचकर एक हजार रुपये तक कमा रहे हैं। अकेले जोगिन्दर नगर शहर में ही आधा दर्जन लोगों के लिये आजकल काफल आमदनी का एक अहम जरिया बना हुआ है।

औषधीय गुणों से भरपूर होता है काफल

काफल जंगली तौर पर पाया जाने वाला एक फल ही नहीं है बल्कि हमारे शरीर में एक औषधि का काम भी करता है। काफल में विटामिन्स, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंन्टस प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। काफल के पेड़ की छाल, फल तथा पत्तियां भी औषधीय गुणों के लिये जानी जाती है। काफल की छाल में एंटी इन्फ्लेमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल क्वालिटी पाई जाती है। इतने गुणों से परिपूर्ण काफल न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम का भी काम करता है।

काफल

काफल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमंद माना गया है। काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग के साथ-साथ हृदय व मधुमेह रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।

काफल खाने में स्वादिष्ठ, रंग में हरा, लाल और काले रंग का फल है। इस फल को वैज्ञानिक तौर पर माइरिका एस्कुलेंटा के नाम से भी जाना जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

कहां पाया जाता है काफल

काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत हिमालय की तलहटी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सदा हरा भरा रहने वाला एक काष्ठीय वृक्ष प्रजाति है। काफल का पेड़ 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊँचाई पर प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला वृक्ष है। काफल जोगिन्दर नगर क्षेत्र के गलू, बसाहीधार, घटासनी, भभौरी धार के साथ-साथ मंडी के चैलचौक, पधर इत्यादि क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है। काफल को बॉक्स मर्टल और बेबेरी के नाम से भी जाना जाता है।

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